Western Ghats Spatial Decision Support System [WGSDSS]
Ecologically Sensitive Regions in the Western Ghats
T V Ramachandra, Bharath Setturu, Vinay S, MD Subash Chandran, Bharath H. Aithal
Energy and Wetlands Research Group (EWRG), Environment Information System (ENVIS),
Center for Ecological Sciences (CES), Indian Institute of Science (IISc),
Tel: 080-22933099 / 22933503 / 23608661
Email: tvr@iisc.ac.in, envis.ces@iisc.ac.in

पश्चिमी घाट स्थानिक निर्णय समर्थन प्रणाली - विवरण

प्रमुख विशेषता

• पारिस्थितिक संवेदनशीलता के आधार पर क्षेत्रों को दिखाने में सहायता करता है |
• पारिस्थितिक संवेदनशीलता की गणना के लिए उपयोग किए जाने वाले चरो को दिखाता है |
• ग्रिड (5'x5' या 9 km x 9 km) और ग्राम दोनों स्तर पर उपलब्ध है |
• विकेंद्रीकृत स्तर पर निर्णय लेने में सहायता करता है (जैव विविधता प्रबंधन समिति, स्थानीय वन विभाग इत्यादि) |

पश्चिमी घाट स्थानिक निर्णय समर्थन प्रणाली (WGDSS) की रचना पश्चिमी घाट में चल रहे पारिस्थितिक अनुसंधान के हिस्से के रूप में सूचना और ओपन-सोर्स वेब प्रौद्योगिकियों में सद्य प्रगति का लाभ उठाकर अलग-अलग स्तरों पर स्थानिक एवं गुण सूचना (जैविक, भू, जलवायु, पारिस्थितिक, पर्यावरण और सामाजिक चर) के एकीकरण के माध्यम से की गई है। यह सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करते हुए शासन की पारदर्शिता को बढ़ाता है, जो पारिस्थितिक एवं जल विज्ञान की दृष्टि से महत्वपूर्ण सह्याद्री पर्वत श्रृंखलाओं के विवेक पूर्ण प्रबंधन में मदद करता है। अलग-अलग स्तरों पर पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों (Ecologically Sensitive Zones) का दृश्य (ग्रिड / ग्राम ) सूचना के संश्लेषण और एकीकरण के माध्यम से वर्तमान स्थिति को समझने में मदद मिलेगी, जो प्राकृतिक संसाधनों के सतत प्रबंधन की दिशा में विकेंद्रीकृत स्तर (उदाहरण जैव विविधता प्रबंधन समिति) पर प्रभावी निर्णय लेने के लिए आवश्यक हैं।

वेब-आधारित स्थानिक निर्णय समर्थन प्रणाली (WSDSS) की रचना निःशुल्क और मुक्त स्रोत सॉफ्टवेयर (GeoServer, PostgreSQL, PostGIS, Leaflet) एवं ओपन जियोस्पेशियल कंसोर्टियम (OGC) मानकों की स्थानिक सूचना को एकीकृत करके बहु मानदंड विश्लेषण करने के लिए बनाया गया है। वेब मेप सर्विस (WMS) एवं वेब फीचर सर्विस (WFS) जैसे फीचर्स पारिस्थितिक, सामाजिक, आर्थिक, जैव विविधता और पर्यावरणीय जानकारी प्रसार करने में सहायक होंगी।

पारिस्थितिक संवेदनशीलता से अभिप्राय यह है कि जब किसी क्षेत्र की पारिस्थितिकीय अखंडता में बदलाव के कारण उस क्षेत्र के जीव-जंतुओं की स्थायी एवं अपूरणीय क्षति अथवा प्राकृतिक प्रक्रियाओं का विकास और प्रजातियों की बड़े पैमाने पर क्षति हो। किसी क्षेत्र की पारिस्थितिक संवेदनशीलता का ज्ञान क्षेत्र के संरक्षण की रणनीति विकसित करने के लिए अत्यंत आवश्यक है, जिसमें पारिस्थितिक संवेदनशीलता के लिए जिम्मेदार कारकों की पहचान करना शामिल है, जिसके अंतर्गत परिदृश्य गतिशीलता (landscape dynamics) एवं भविष्य परिवर्तन दृश्यों के द्वारा अव्यवस्थित और अनियंत्रित विकास को कम किया जा सके। औद्योगीकरण और वैश्वीकरण के साथ अनियोजित विकासात्मक गतिविधियों के कारण पिछली शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर भूमि आवरण में परिवर्तन देखा गया। यह शमन उपाय लागू करने के महत्व को दर्शाता है जिसमें हित धारकों (stakeholders) को शामिल कर, स्थान-विशिष्ट संरक्षण उपायों के माध्यम से होने वाले प्रभाव को संबोधित करना होगा। संरक्षण और सतत विकासात्मक नीतियों को तैयार करने में पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का चित्रण आवश्यक है। संवेदनशील क्षेत्रों का चित्रण जैव-भू-जलवायु, पारिस्थितिक और सामाजिक कारकों को एकीकृत करके किया जाता है जो कि सामाजिक-पारिस्थितिक प्रणालियों, प्रभावों और चालकों की गतिशीलता का प्रतिनिधित्व करते हैं। पश्चिमी घाट जो 36 विश्व जैव विविधता हॉटस्पॉट में एक है, जिसका सुदूर संवेदन (Remote sensing) डेटा द्वारा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों का विश्लेषण वनों की स्थिति और संरक्षण पर गंभीर चिंताओं को उजागर करता है। इन प्राचीन पारिस्थितिक तंत्रों का कुप्रबंधन वनोन्मूलन से स्पष्ट है और वन पारिस्थितिकीय तंत्र का वर्तमान विस्तार जल सुरक्षा के लिए खतरा पैदा कर रहा है जो कि प्रायद्वीपीय भारत में रह रहे लोगों के लिए एक चुनौती है। स्पेशिओटेम्पोरल भूमि उपयोग (Land Use) का विश्लेषण 4.5% निर्मित क्षेत्र और 9% कृषि क्षेत्र की वृद्धि के साथ 5% सदाबहार वन क्षेत्र की हानि के द्वारा मानव जनित और प्रेरित विकासात्मक जोर को उजागर करते हैं। विखंडन विश्लेषण (Fragmentation analyses) इस बात पर प्रकाश डालता है कि आंतरिक वन, वन भूभाग का केवल 25% है जो विखंडन दबाव और स्थानीय पारिस्थितिकी पर प्रभाव का वर्णन करता है। प०स०क्ष० (ESR) का चित्रण जैविक, अजैविक, और सामाजिक/मानव विज्ञानीय कारकों पर विचार करता है, जो संवेदनशील परिदृश्य की वर्तमान स्थिति और पारिस्थितिकी तंत्र संतुलन बनाए रखने में उनका महत्व को दर्शाता है। ग्रिड के अनुसार विश्लेषण ईएसआर-1 के अंतर्गत 32% (755 ग्रिड) क्षेत्र जो अत्यधिक पारिस्थितिक संवेदनशीलता को दर्शाता है, ईएसआर-2 के अंतर्गत 16% (373 ग्रिड), जिनमें ईएसआर-1 होने की संभावना है, ईएसआर-3 और 4 के अंतर्गत क्रमशः 34% (789 ग्रिड) और 18% (412 ग्रिड) क्षेत्र है जो मध्यम और न्यूनतम पारिस्थितिक संवेदनशीलता को दर्शाता है। ईएसआर (ESR) विश्लेषण से पता चलता है कि 63,148 वर्ग किमी क्षेत्र अत्यधिक पारिस्थितिक संवेदनशीलता के अंतर्गत है, 27,646 km2 अधिक पारिस्थितिक संवेदनशीलता के अंतर्गत है, 48,490 वर्ग किमी मध्यम और 20,716 वर्ग किमी न्यून पारिस्थितिक संवेदनशीलता के अंतर्गत है। सतत् विकास नीति तंत्र में ईएसआर को एकीकृत करने से अनियोजित विकास गतिविधियों को विनियमित करने में मदद मिलेगी, जो लोगों की आजीविका को बनाए रखने के लिए आवश्यक पारिस्थितिकीय तंत्र सेवाओं की निरंतरता के साथ पारिस्थितिक सुरक्षा सुनिश्चित करने में सहायक होगा। पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील पश्चिमी घाट के विवेक पूर्ण प्रबंधन के माध्यम से अगली पीढ़ी के लिए प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी हमारे कन्धों पर है और हमें मिलकर भावी पीढ़ी के लिए इस महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण सुनिश्चित करना होगा ।

अनुवाद राजेश सिंह राणा और अभिषेक बघेल द्वारा ,
ऊर्जा एवं आर्द्रभूमि अनुसंधान समूह, सीईएस, भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलोर|
Translated by Rajesh Singh Rana and Abhishek Baghel,
Energy & Wetlands Research Group, CES, Indian Institute of Science, Bangalore.


Research Team (Data Compilation)

G.R. Rao Field Data Collection
Central Western Ghats
Vishnu D. Mukri
Shrikanth Naik
Misha Fauna Distribution
Sreelekha P.B Angiosperm Tree Species
Haritha N Mapping Biodiversity
Arjun SR Protected Areas
Sincy V Valuation of Ecosystem Services
Asulabha KS
Rajesh Rana Western Ghats Villages Rectification


Developer Team

Abhishek Baghel Appplication Design & Developer


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